मिलावटी आहार से बढ़ती बीमारियां

Namastay News
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सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट’ (सीएसई) की रपट के मुताबिक शहरों में रह रहे 93 फीसद बच्चे सप्ताह में एक दिन डिब्बाबंद खाद्य सामग्री खाते हैं, जबकि 53 फीसद बच्चे प्रतिदिन तुरंता आहार यानी ‘जंक फूड’ खा रहे हैं।

पि छले कुछ समय में छोटे बच्चों और युवाओं में हृदय रोग, मधुमेह और कैसर से मौत के मामले तेजी से बड़े हैं। कवक यानी ‘फंगस’ और विषाणु से होने वाली खतरनाक बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के मुताबिक 2022 में देश में कैंसर के 14.1 लाख नए मामले सामने आए, जिसमें नौ लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। रपट के मुताबिक वर्ष 2050 तक दुनिया भर में कैंसर की बीमारी और बढ़ेगी। कैसर पर शोध की अंतरराष्ट्रीय संस्था आइएआरएसी के अनुसार पिछले वर्षों में मुंह, गला और स्तन कैंसर में बढ़ोतरी के अलावा पैंतीस प्रकार के कैंसर में वृद्धि हुई है। पेट, मलाशय, प्रोस्टेट, त्वचा और रक्त कैसर में एकाएक वृद्धि हैरान करने वाली है। देश में जहां लोगों में मोटापा बढ़ रहा है, वहीं यह कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी का कारण भी बन रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2035 तक भारत में कैंसर से मरने वालों की संख्या पैंतीस लाख प्रति वर्ष तक पहुंच जाएगी।


कैंसर का कारण मानव शरीर कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि और उनका विभाजन है। रसायन युक्त भोजन सामग्री और खराब जीवन शैली भी इसकी वजह है। ‘सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट’ (सीएसई) की रपट के मुताबिक शहरों में रह रहे 93 फीसद बच्चे सप्ताह में एक दिन डिव्वाबंद खाद्य सामग्री खाते हैं, जबकि 53 फीसद बच्चे प्रतिदिन तुरंता आहार यानी ‘जंक फूड’ खा रहे हैं। शहरों से लेकर गांवों के गरीब बच्चों तक की दिनचर्या ‘जंक फूड’ से शुरू हो रही है। वर्ष 2011 से 2021 की अवधि में देश में ‘जंक फूड’ का कारोबार 13.37 फीसद की दर से लगातार बढ़ रहा है। इससे देश के ग्यारह फीसद बच्चे मोटापे का शिकार हो चुके हैं। ‘लांसेट’ पत्रिका की शोध रपट 2022 के मुताबिक देश में 1.25 करोड़ बच्चे अपेक्षित वजन से अधिक मोटे थे। यह संख्या वर्ष 1990 के आंकड़ों की तुलना में 25 गुना अधिक बढ़ रही है। इसकी वजह देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खानपान की सामग्री सहित सभी तरह के व्यापार की खुली अनुमति मिलना है। विदेश व्यापार को अनुमति मिलने के बाद से देश में प्रसंस्कृत डिब्बाबंद सामग्री का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है।


गरीब से लेकर अमीर और छोटी से लेकर बड़ी उम्र तक के लोग डिब्बाबंद चीजों को तुरंत भूख मिटाने की खाद्य सामग्री मान चुके हैं। बड़ी संख्या में आम जन अब काम के दौरान घर से बना नाश्ता ले जाने के बजाय, बजार की खाद्य सामग्री पर आश्रित हो चुके हैं। देश में बीस वर्ष से अधिक उम्र के सात करोड़ से अधिक बयरक, जिनकी दैनिक भोजन सामग्री में अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ शामिल हैं, स्वयं को तंदुरुस्त नहीं मानते हैं। डिब्बाबंद भोजन में अधिक नमक, शीतल पेय में कृत्रिम मिठास के साथ ‘प्रिजर्वेटिव’ की अत्यधिक मात्रा यकृत, गुर्दे की बीमारी, ब्रेन ट्यूमर आदि सहित कैंसर रोग के लिए जिम्मेदार हैं। कृत्रिम पेय पदार्थ, चाकलेट और डिब्बाबंद फलों के रस से मूत्र में संक्रमण की शिकायतें देश में तेजी से बढ़ी हैं। सीएसई के आंकड़े बताते हैं कि देश में 71 फीसद आबादी स्वस्थ आहार नहीं ले रही है।


जिसकी वजह से देश में प्रतिवर्ष 17 लाख लोग मधुमेह, कैंसर, तपेदिक और हृदय संबंधी बीमारियों से मौत का शिकार हो रहे हैं। अमेरिका के ‘इंस्टीट्यूट फार हेल्थ मैटिक्स एंड पोल्यूशन’ की रपट के अनुसार सिगरेट और शराब के बाद विश्व में अधिक मौत तय मात्रा से अधिक


रतीय कानून में शिथिलता और भा जांच में देरी के कारण मिलावट करने संबंधी अपराध को
कारगर रूप से रोका नहीं जा सका है। बावजूद इसके, सरकारी जांच में कसावट लाने, खाद्य सामग्री की गुणवता और नागरिकों की सेहत पर कहीं कोई चिंता नहीं दिखती। बीते वर्षों में जनता की मांग पर राजस्थान और मध्यप्रदेश सहित कुछ राज्य सरकारों ने कानून में संशोधन कर मिलावट करने पर सजा तो बढ़ा दी है, लेकिन जांच प्रक्रिया को दुरुस्त नहीं किया सका है। जांच, सुनवाई की लंबी प्रक्रिया और भ्रष्टाचार अपराधी को दोषमुक्त करने में मददगार ही साबित हो रहे हैं।


गैरसरकारी संगठन के एक शोध में दावा किया गया है कि देश में बढ़ते कैंसर और दिल के रोग की एक वजह नमक और चीनी में मौजूद प्लास्टिक के सूक्ष्म कण है। डिब्बाबंद सामग्री में चिंता का विषय नमक या शक्कर ही है।


अमेरिका की एक सौंदर्य प्रसाधन कंपनी के विरुद्ध वहां की हजारों महिलाओं ने इस आरोप के साथ मामला दायर कराया है कि उसके उत्पाद से ‘मेसोथेलियोमा कैंसर’ फैल रहा है। जबकि भारत में इन उत्पादों को उच्च गुणवत्ता का बता कर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। शारीरिक सौंदर्य की उक्त सामग्री को शरीर पर अधिक समय तक टिकाऊ बनाने के लिए ‘एस्बेस्टस’ का उपयोग होता है। ‘ब्रिटिश मेडिकल टेसबर्ड’ की रपट के मुताबिक सौंदर्य सामग्री में एस्बेस्टस को उपलब्ध तकनीक से पकड़ना आसान नहीं है। इसलिए सौंदर्य प्रसाधन कंपनियां अपने उत्पादों को विषाणुमुक्त होने का दावा जरूर करती हैं, लेकिन सौंदर्य प्रसाधन में टेल्फम और बेंजीन की मात्रा होती है, जो कैसरकारक है। देश में खाद्य सामग्री, दवाइयों सहित दैनिक उपयोग की सामग्री की निगरानी और जांच के लिए संबंधित विभागों के पास न तो पर्याप्त कर्मचारी हैं, न ही जांच प्रयोगशालाएं। राज्य सरकारों के पास ऐसे विभाग चलाने के लिए वित्तीय बजट की कमी है।


फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया’ (एफएसएसआइ) के नियम अनुसार एक खाद्य निरीक्षक के पास अधिकतम दो हजार दुकानों की निगरानी का जिम्मा होना चहिए, लेकिन राज्यों में एक-एक खाद्य निरीक्षक पर पंद्रह हजार दुकानों तक की निगरानी का दायित्व है। वर्ष 2022 तक देश में मात्र 224 खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं थीं। जिसमें सरकारी प्रयोगशालाओं की संख्या सौ से ज्यादा नहीं हैं। प्रयोगशालाओं की कमी के कारण समय पर जांच न होने से मिलावट करने वाले दंड प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं।


बीते समय में हांगकांग और सिंगापुर के एक भारतीय मसाला कंपनी के आयात पर रोक के बाद भी भारतीय बाजारों में इन उत्पादों का विक्रय नहीं रोका गया, क्योंकि भारतीय प्रयोगशालाओं की स्पष्ट जांच रपट नहीं थी। जबकि कंपनी के उत्पाद पर कैंसरकारक ‘प्रिजर्वेटिव’ की अधिक मात्रा का उपयोग विदेशी प्रयोगशालाओं में पाया गया। भारतीय कानून में शिथिलता और जांच में देरी के कारण मिलावट करने संबंधी अपराध को कारगर रूप से रोका नहीं जा सका है। बावजूद इसके, सरकारी जांच में कसावट लाने, खाद्य सामग्री की गुणवत्ता और नागरिकों की सेहत पर कहीं कोई चिंता नहीं दिखती। बीते वर्षों में जनता की मांग पर राजस्थान और मध्यप्रदेश सहित कुछ राज्य सरकारों ने कानून में संशोधन कर मिलावट करने पर सजा तो बढ़ा दी है, लेकिन जांच प्रक्रिया को दुरुस्त नहीं किया सका है। जांच, सुनवाई की लंबी प्रक्रिया और भ्रष्टाचार अपराधी को दोषमुक्त करने में मददगार ही साबित हो रहे हैं।


भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण ने गुणवत्ता और दोषपूर्ण उत्पादों की ब्रिकी, निर्माण और भंडारण पर रोक लगाने के उद्देश्य से चौदह अंकों के पंजीयन को अनिवार्य किया है, लेकिन आज भी साठ फीसद खाद्य सामग्री विक्रेताओं के पास लाइसेंस नहीं है। वजह, निगरानी तंत्र की कमी। सड़कों के किनारे धड़ल्ले से अरथास्थ्यकर खाद्य सामग्री बिकती है। मिलावटी सामग्री से हादसा होने की दशा में प्रशासन को खोज पाना आसान नहीं है। सच तो यही है कि सरकारी तंत्र कोई भी घटना होने तक सोता रहता है।


नमक खाने से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति वयस्क प्रतिदिन 02 ग्राम से अधिक मात्रा की अनुमति नहीं देता है। ‘टाक्सिक्स लिंक’ नामक

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