Taj Mahal
42 एकड़ पर फैला दूर से ही चमकता हुआ यह मकबरा जहां अपने अंदर खूबसूरती के बगीचे सजे हुए हैं वहीं इसके ऊपर गम और उदासी के कई बदल अभी तक मंडला रहे हैं ,लगभग 400 साल पहले बनाए जाने वाली यह खूबसूरत बिल्डिंग जहां अपने दौर की सबसे बड़ी और सबसे शानदार बिल्डिंग हुआ करती थी वही आज इसको दुनिया का सातवां अजूबा भी माना जाता है
Taj Mahal को बनाने में 20000 मजदूरों ने दिन रात खून पसीना बहाया और वह भी एक या दो सालों तक नहीं बल्कि पूरे 22 सालों तक अगर आज के दौर में इसकी कीमत का अंदाजा लगाया जाए तो संगमरमर का यह अनमोल मकबरा हैरतअंगेज तौर पर 1 बिलीयन डॉलर यानी 7:30 हजार करोड़रुपए से भी ज्यादा महंगा है
क्योंकि इस Taj Mahal में मुगल आर्किटेक्ट्स ने अपने कलाकारी की कई ऐसी निशानियां छोड़ी थी जिनकी दुनिया के टॉप इंजीनियर भी आज तक तारीफ करते हैं Taj Mahal को ऐसे डिजाइन किया गया कि जब मेन गेट के पीछे से इसको देखा जाता है तो यह काफी बड़ी लगती है लेकिन जैसे ही मेन गेट की तरफ बढ़ा जाता है तो ऑटोमेटेकली इसका साइज छोटा होता जाता है
दिमाग को चकरा देने वाली यह कोई पहले ट्रिक नहीं थी जो मुगल आर्किटेक्ट्स ने इस्तेमाल की हो इसके गिर्द चारों मनरो को बिल्कुल सीधा खड़ा नहीं किया गया बल्कि यह मीनार बाहर की तरफ थोड़ा झुके हुए हैं क्योंकि अगर इनका सीधा खड़ा किया जाता तो दूर से देखने पर यह अंदर की तरफ झुके हुए लगता
मिनारो को बाहर की तरफ झुकाने का एक और कारण भी था और वह यह था की खतरनाक भूकंप की सूरत में अगर यह मीनार गिरे भी तो यह बाहर की तरफगिरकर Taj Mahal पर एक खरोच भी ना आने दे लेकिन आखिर माजरा क्या था कि इसको बनाने वाले किसी सूरत में Taj Mahal पर एक खराश भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे
शाहजहां की टोटल 6 बीवियां थी जो आगरा फोर्ट के हरम में ही रहती थी इन 6 में से शाहजहां सबसे ज्यादा मोहब्बत मुमताज से करते थे और यही वजह थी कि उनका ज्यादातर वक्त मुमताज महल के साथ ही गुजरता था वक्त तेजी से गुजरा जा रहा था और 4 सालों के बाद यानी 1621 में मुगल शहंशाह अचानक चल बसे
शाहजहां जो पहले ही मुग़ल एंपायर में खास फेमस हो चुका था और जो शहंशाह का चाहिता बेटा भी था 1628 में यानी बाप की मौत के 7 सालों बाद उसने शहंशाह की गद्दी संभाली पूरी मुघल सल्तनत अपने नए शहंशाह से बेहद खुश नजर आती थी
यह वह पीरियड था जब मुग़ल एंपायर अपने पूरे उरूज पर थी यानी पूरे इंडिया-पाकिस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान के भी कई हिस्सों में मुगलिया सल्तनत का राज हुआ करता था सारे फैसले शाहजहां खुद करता था जबकि मुमताजमहल पीछे रहकर शाहजहां को मशवरे दिया करती थी
लेकिन किसी को भी इस बात का इल्म नहीं था कि यह खुशियां उन करीब मातम में बदलने वाली है
अभी एक ही साल गुजरा था कि एक बार फिर से मुगल अंपायर को दुश्मनों का सामना करना पड़ा अगले दो साल जंग चलती रही और शाहजहां को इस जंग में भी भरपूर कामयाबी नसीब हुई लेकिन शाहजहां अभी इस कामयाबी का जशन मानते की उनको एक अफसोस ना खबर से आ किया गया मुमताज महल जो के शाहजहां के 14 बच्चों को जन्म दे रही थी उसकी हालत बिगड़ गई और 17 जून सन 1631 को वह ना चाहते हुए भी इस दुनिया से चल बसी
पूरी मुगल या सल्तनत का जशन देखते ही देखते मातम में बदल गया यह खबर जो शाहजहां पर पहाड बनाकर गिरी थी उसने तो जैसे उनकी दुनिया ही खत्म कर डाली शाहजहां की सबसे पहली मोहब्बत और उनकी सबसे अजीज बीवीमुमताज महल इस दुनिया से रुखसत हो चुकी थी
कहा जाता है कि इस गम की परछाई ने शाहजहां को काल अंधेरों में धकेल दिया था अगले 8 दिनों तक उन्होंने कुछ नहीं खाया और अगले दो सालों तक ना कोई मौसीकी सुनी और ना ही परफ्यूम लगाया मुमताज महल ने मरणे से पहले एक आखिरी ख्वाहिश की थी
वह चाहती थी कि उनकी कबर दुनिया के सबसे खूबसूरत मकबरे में बनाई जाए इस टास्क को और मुमताज महल की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए शाहजहां ने अपनी सारी दौलत और पूरी जिंदगी जाया करने का इरादा कर लिया
मुमताज के गुजरने के 6 माह बाद यानी 1632 में ही ताजमहल की कंस्ट्रक्शन का काम शुरू कर दिया गया करीब 20000 से भी ज्यादा मजदूर पत्थर तराश और कारीगरों को पूरी सल्तनत से इकट्ठा किया गया लश्कारों के लश्कर शाहजहां के हुकुम पर आगरा बुला लिए गए थे
क्योंकि मुमताज की खबर यमुना रिवर के बराबरमें मौजूद थी इसी वजह से इस जगह पर दुनिया की सबसे खूबसूरत बिल्डिंग बनाना काफी मुश्किल टास्क था रिवर के किनारे जमीन काफी सॉफ्ट होती है और अगर यहां खुदाई का काम किया गया तो पानी का बहाव ताजमहल की फाउंडेशन को भी नुकसान पहुंचा सकता था
इस मसले से निपटने के लिए मुगल इंजीनियर ने यहां सबसे पहले जमीन के अंदर कई कुआ खुदवान शुरू किया मजदूर यह कुएं तब तक होते रहते जब तक खुश्क जमीन नजर ना आ जाती थी इन कुओं को पत्थरों और इटो से भरा गया और फिर उसके ऊपर पत्थरों के बड़े-बड़े कॉलम्स खड़े किए गए (Taj Mahal )
इस सारे काम को अंजाम देने के लिए मजदूरों के साथ-साथ हाथियों की एक बहुत बड़ी फौज को भी इस्तेमाल किया गया मुगल इंजीनियर की यह ट्रिक कम कर चुकी थी और अब एक ऐसी मजबूत फाउंडेशन तैयार थी जो नरम जमीन पर भी फौलाद बनकर खड़ी थी
फाउंडेशन के बाद अब बारी थी एक ऐसी बिल्डिंग डिजाइन की जो आज से पहले किसी ने भी ना देखा हो एक ऐसा डिजाइन जो पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डालें ताजमहल के डिजाइन का आईडिया शाहजहां ने अपने बाप दादा के मकबरों से लिया था
बाप के मकबरे से मिनारो का आईडिया लिया गया दादा के मकबरे से बिल्डिंग कोर का आईडिया लिया और अपने अंकल के मकबरे से डोम का आईडिया लिया था और जब इन सबको कंबाइन किया गया तो एक शानदार और आलीशान डिजाइन उभर कर सामने आया
Taj Mahal के स्ट्रक्चर को बनाने के लिए लाखों नहीं करोड़ों ईंटें मौके पर ही पकाई गई यह सब इतना आसान नहीं था और इसमें पैसे भी जा रहे थे हर गुजरते दिन शाही खजाना तेजी से खाली होता जा रहा था लेकिन शाहजहां को किसी चीज की परवाह नहीं थी
कई सालों की मेहनत के बाद Taj Mahal का स्ट्रक्चर कंप्लीट हो चुका था और अब बारी थी इसको संगमरमर से सजाने की यह संगमरमर आगरा से 400 किलोमीटर दूर राजस्थान से मंगाया जाना था क्योंकि यहां का मकराना मार्बल आज तक दुनिया का फिनेस्ट मार्बल माना जाता है
शाहजहां ने ताजमहल के लिए पूरा मकराना मार्बल रिजर्व कर लिया था यानी जब तक ताजमहल की डिमांड पूरी नहीं हो पाएगी तब तक किसी को भी यह मार्बल खरीदने की इजाजत नहीं थी 1000 हाथियों की मदद से हजारों टन वजनी मार्बल राजस्थान से आगरा मंगाया गया
ताजमहल का यह खूबसूरत डोम इतना बड़ा है कि इसका अंदाजा सिर्फ आंखों से देखकर ही लगाया जा सकता है आजकल इस तरह के डोम बड़ी आसानी से स्टील स्ट्रक्चर पर बनाए जा सकते हैं लेकिन 400 साल पहले 40 मीटर ऊंचे डोम को बनाने में उनके पास सिर्फ पथरो का ही सहारा था
इस डोम को बनाने में मुगलइंजीनियर ने जो स्ट्रेस कैलकुलेशन की थी उसकी आज के इंजीनियर भी बहुत तारीफ करते हैं ताजमहल की फिनिशिंग के लिए इसको पितृ डोरा यहां पर चिंगारी से डेकोरेट किया जाना था पेट्रा दूर एक ऐसी कलाकारी को कहा जाता है जिसमें कीमती पत्थर को मार्बल के अंदर तराश कर लगाया जाता है
मार्बल को बड़ी महारत और बारीकी से कीमती पत्थर की शॉप के हिसाब से तराशा जाता है और फिर उसमें पत्थर को ग्लू के जरिए चिपकाए जाता है ताजमहल पर इस्तेमाल होने वाली ग्लू कोई आम ग्लू नहीं थी काफी रिसर्च और लैबोरेट्री टेस्ट के बाद मालूम पड़ा कि यह शिरा लेमन जूस और संगमरमर पाउडर को मिलाकर बनाई जाती थी
शाहजहां का यह महंगा करीम प्रोजेक्ट कंप्लीट तो हो चुका था लेकिन इसने मुगलिया सल्तनत को तबाही के किनारे पर ला खड़ा किया 4 सालों के बाद यानी 1658 में शाहजहां और मुमताज के अपने ही बेटे ने शाही तक पलट दिया और खुद मुगल अंपायर का शहंशाह बन गया
शाहजहां जो पिछले 30 सालों से इस गद्दी पर राज कर रहे थे उसको कैदी बनाकर आगरा फोर्ट में ही बंद कर दिया गया सिर्फ एक फैसिलिटी ऐसी थी जो शाहजहां को दी गई और वह यह थी कि जिस कमरे में उसको बंद किया गया था उसकी खिड़की से वह ताजमहल को देख सकते थे 8 साल कैद में रहने के बाद 74 इयर्स की एज में शाहजहां भी इस दुनिया को अलविदा कर गए